18-02-94  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

स्वमान की स्मृति का स्विच ऑन करने से - देह भान के अंधकार की समाप्ति

ताज, तख्त और तिलक की स्मृति दिलाकर फरिश्ते स्वरूप में स्थित कराने वाले अकालमूर्त बापदादा अपने अकाल तख्तनशीन बच्चों प्रति बोले-

आज अकाल मूर्त बाप सभी अकाल तख्तधारी, विश्व कल्याण के ताजधारी, मस्तक में चमकते हुए बिन्दी के तिलकधारी बच्चों को देख रहे हैं। हर एक तख्तधारी भी हैं, ताजधारी भी हैं, तिलक भी सभी का चमक रहा है। सभी के मस्तक बीच आत्मा बिन्दी सितारे के समान दिखाई दे रही है। आप सभी भी अपने तख्त, ताज और तिलक को देख रहे हो। सारी सभा बापदादा को ताज और तिलकधारी, तख्तनशीन दिखाई दे रही है। ये अलौकिक सभा, कलियुगी राज्य सभा और सतयुगी राज्य सभा से कितनी न्यारी और प्यारी है! तो ऐसी सभा की अधिकारी आत्मायें कितनी प्यारी हैं! आप सभी को भी अपना ये तख्त, ताज और तिलकधारी स्वरूप प्यारा लगता है ना! जब अकाल तख्तनशीन, अकालमूर्त, श्रेष्ठ आत्मा स्थिति में स्थिति हो तख्त पर बैठते हो तो यह स्थिति कितनी श्रेष्ठ है! सभी के श्रेष्ठ स्थिति की झलक इस सूरत को फरिश्ता बना देती है। साधारण सूरत नहीं, फरिश्ता सूरत। तो फरिश्ता सूरत भी कितनी प्यारी है! फरिश्ते सभी को बहुत प्यारे लगते हैं। क्योंकि फरिश्ता सर्व का होता है, एक-दो का नहीं। बेहद की दृष्टि, बेहद की वृत्ति, बेहद की स्थिति वाला है। फरिश्ता सर्व आत्माओं के प्रति परमात्म सन्देश वाहक है। फरिश्ता अर्थात् सदा उड़ती कला वाला। फरिश्ता अर्थात् सर्व का रिश्ता एक बाप से जुटाने वाला है। फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। देह और देह के सम्बन्ध से न्यारा, हल्का। फरिश्ता अर्थात् सर्व को स्वयं की चलन और चेहरे द्वारा बाप समान बनाने वाला। फरिश्ता अर्थात् सहज और स्वत: अनादि और आदि संस्कार सदा इमर्ज स्वरूप में दिखाने वाला। फरिश्ता अर्थात् निमित्त भाव, निर्मान स्वभाव और सर्व प्रति कल्याण की श्रेष्ठ भावना वाला। ऐसे फरिश्ते हो ना? फलक से कहो-हम नहीं होंगे तो कौन होगा! फलक है ना! तो बापदादा ऐसे फरिश्तों की दरबार देख रहे हैं। सिर्फ इसी स्वमान में स्थित रहने से देहभान स्वत: ही समाप्त हो जायेगा।

बाप देखते हैं कि बच्चे देहभान को छोड़ने की बहुत मेहनत करते हैं। एक देहभान के रूप को छोड़ते हैं तो दूसरा आ जाता है, फिर दूसरे को छोड़ते हैं तो तीसरा आ जाता है। लेकिन छोड़ना सदा मुश्किल होता है और धारण करना सहज होता है। तो बापदादा कहते हैं कि स्वमान में सदा रहो। जहाँ स्वमान है वहाँ देहभान आ ही नहीं सकता। तो छोड़ने की मेहनत नहीं करो लेकिन स्वमान में स्थित रहने का अटेन्शन रखो और संगमयुग पर स्वयं बाप द्वारा कितने अच्छे-अच्छे स्वमान प्राप्त हैं। प्राप्त करना नहीं है, प्राप्त हैं। अपने स्वमान की लिस्ट निकालो। कितनी बड़ी लिस्ट है! सारे कल्प में कितने भी स्वमान अर्थात् टाइटल्स किसी भी नामीग्रामी आत्मा के हों, चाहे राजनेता हो, चाहे अभिनेता हो, चाहे धर्मात्मा हो, चाहे महान आत्मा हो, उनके अगर टाइटल गिनती भी करो तो आपके स्वमान की लिस्ट से ज्यादा हो सकते हैं? और रोज सवेरे-सवेरे बापदादा स्वमान की स्मृति दिलाते हैं, स्वमान में स्थित कराते हैं। रोज भी एक नये ते नया स्वमान स्मृति में रखो तो स्वमान के आगे देहभान ऐसे भाग जाता जैसे रोशनी के आगे अंधकार भाग जाता। न समय लगता, न मेहनत लगती। तो बार-बार भिन्न-भिन्न देहभान को मिटाने की मेहनत क्यों करते हो? स्वमान की स्मृति का स्विच ऑन करना नहीं आता है क्या? कितना भी गहरा काला बादल सूर्य की रोशनी को छिपाने वाला हो लेकिन आपके पास ऑटोमेटिक डायरेक्ट परमात्म लाइट का कनेक्शन है। डायरेक्ट लाइन है ना? लाइन क्लीयर है या लीकेज है? किसका लिंक होता है लेकिन लीकेज हो जाती है। तो डायरेक्ट लाइन कितनी पॉवरफुल होती है! डायरेक्ट कनेक्शन है या इनडायरेक्ट है? सभी की डायरेक्ट लाइन है ना? सभी को डायरेक्ट लाइन मिल गई है? फिर तो एक बादल क्या, सारे बादल आ जायें, अंधकार कर सकते हैं क्या? स्मृति का स्विच डायरेक्ट लाइन से ऑन किया और इतनी लाइट आ जायेगी जो स्वयं तो लाइट में होंगे ही लेकिन औरों के लिये भी लाइट हाउस हो जायेंगे। ऐसे होता है ना? अनुभवी हो ना? लेकिन कभी-कभी अनुभव को किनारे रख देते हैं। सहारा मिला है लेकिन कभी-कभी सहारे के बजाय किनारे हो जाते हैं। मेहनत लगती है क्या? सदा नहीं लगती, कभी-कभी लगती है! स्विच ऑन करना भूल जाते हो क्या? वास्तव में अगर एक मास्टर सर्वशक्तिमान का स्वमान भी याद हो तो मेहनत की कोई बात ही नहीं है। मार्ग मेहनत का नहीं है लेकिन हाइ-वे के बजाय गलियों में चले जाते हो वा मंज़िल के निशाने से और आगे बढ़ जाते हो तो लौटने की मेहनत करनी पड़ती है। बापदादा सदा अपने स्नेह और सहयोग की गोदी में बिठाकर मंज़िल पर ले जा रहे हैं। गोदी में बैठकर मंज़िल पर पहुँचने में मुश्किल क्यों होता है? स्नेह और सहयोग की गोदी से निकल कभी और आकर्षण खींचती है तो चक्कर लगाने निकल जाते हो। थक भी जाते हो फिर मेहनत भी महसूस करते हो। तो इस वर्ष क्या करेंगे? मेहनत समाप्त। मोहब्बत में, लव में लीन हो जाओ, लवलीन हो हर कार्य करो। जो लीन होता है उसको और कुछ दिखाई नहीं देता, आकर्षित नहीं करता। तो लव में रहते हो। ऐसा कोई होगा जो कहे-मुझे बाप से प्यार नहीं है, लव नहीं है! सभी का लव है ना! लेकिन कभी लव में रहते हो, कभी लव में लीन रहते हो। नहीं तो देखो मन-बुद्धि द्वारा स्थिति में बाप का सर्व सम्बन्धों से साथ है। साथ भी है और सेवा में बाप हर समय साथी है। तो स्थिति में साथ है और सेवा में साथी है। जहाँ सदा साथ भी है और साथी भी है तो वहाँ क्या मुश्किल है? परम आत्मा की महिमा ही है मुश्किल को सहज करने वाले। ऐसा बाप आपके साथ है और साथी है तो मुश्किल हो सकता है? फिर क्यों मुश्किल करते हो?

सर्व सम्बन्धों की सर्व समय प्रमाण बाप स्वयं हर बच्चे को ऑफर करते हैं। जैसा समय वैसे सम्बन्ध से साथ रहो वा साथी बनाओ। कोई समय तो सम्बन्ध से साथी बनाते हो और कोई समय साथी को किनारे कर देते हो। फिर कहते हैं कि अकेलापन फील होता है। चलते-चलते अकेलापन लगता है। और अकेलापन होने से क्या होता है? अपना श्रेष्ठ जीवन साधारण जीवन अनुभव होता है। फिर कहते हैं बोरिंग लाइफ हो गई है, कुछ चेंज चाहिये। एक तरफ बापदादा को खुश करते हैं कि हम तो कम्बाइन्ड हैं। कम्बाइन्ड कभी अकेला होता है क्या? बड़ी अच्छी-अच्छी बातें करते हैं-बाबा, हम तो हैं ही कम्बाइन्ड। फिर 15-20 वर्ष बीतता तो कहते हैं चेंज चाहिये, अकेले हो गये हैं। वैसे भी देखो दुनिया में अगर चेंज चाहते हैं तो कोई सागर के किनारे पर जाकर सो जाते हैं, कोई मनोरंजन में चले जाते हैं, डांस करते हैं, कोई गीतों के मौज में मौज मनाते हैं, कोई कम्पनी या कम्पैनियन का साथ लेते हैं। यही करते हो ना! खेल करते हो? खेलों की दुनिया में बगीचे में चले जाते हो! यहाँ ज्ञान सागर का किनारा है यह भूल जाते हो। अगर सागर पसन्द है तो सागर के किनारे बैठ जाओ। बाप ज्ञान सागर है ना। बाप कम्पैनियन नहीं है क्या? उससे मजा नहीं आता है? कि समझते हो बिन्दी से क्या मजा आयेगा! आप सभी को सदा बहलाने के लिये तो ब्रह्मा बाप भी अव्यक्त हुए। लेकिन यहाँ तो सदा का साथी चाहिये ना। जब भी अपने को अकेलापन अनुभव करो तो उस समय बिन्दु रूप नहीं याद करो। वह मुश्किल होगा, उससे बोर हो जायेंगे। लेकिन अपने ब्राह्मण जीवन की भिन्न-भिन्न समय की रमणीक अनुभव की कहानियाँ स्मृति में लाओ। अनुभव की कहानियों का किताब सभी के पास है। जब बोर हो जाते हैं तो नॉवेल्स पढ़ते हैं ना। तो आप अपने कहानियों का किताब खोलो और उसे पढ़ने में बिजी हो जाओ। अपने स्वमान की लिस्ट को सामने लाओ, अपने प्राप्तियों की लिस्ट को सामने लाओ। ब्राह्मण संसार के विचित्र प्रैक्टिकल कहानियों को स्मृति में लाओ। जैसे अपने को चेंज करने के लिये समाचार पत्र पढ़ने का भी आधार लेते हैं तो ब्राह्मण संसार के कितने अलौकिक समाचार आदि से अब तक देखे हैं वा सुने हैं, समाचार पत्र भी आपके पास हैं। कइयों को पेपर पढ़ने के बिना चैन नहीं आता है। पेपर भी आपके पास है। पेपर पढ़ो। डान्स और साज़  तो जानते ही हो। बिना थकावट के डांस करते हो। मनमनाभव होना ही सबसे बड़ा मनोरंजन है। क्योंकि सर्व सम्बन्धों का रस वा अनुभूतियां करना ही मनमनाभव है। सिर्फ बाप के रूप में या विशेष तीन रूपों के सम्बन्ध से अनुभव नहीं है लेकिन सर्व सम्बन्धों के स्नेह का अनुभव कर सकते हो। सम्बन्धों से याद तो करते हो लेकिन फर्क क्या हो जाता है? एक है दिमाग से नॉलेज के आधार पर सम्बन्ध को याद करना और दूसरा है दिल से उस सम्बन्ध के स्नेह में, लव में लीन हो जाना। आधा तो करते हो बाकी आधा रह जाता है। इसलिये थोड़ा समय तो ठीक रहते हो, थोड़े समय के बाद सिर्फ दिमाग से ही सम्बन्ध को याद किया तो दिमाग में दूसरी बात आने से दिल बदल जाता है। फिर मेहनत करनी पड़ती है। फिर क्या कहते हो-हमने याद तो किया, बाबा मेरा कम्पैनियन है, लेकिन कम्पैनियन ने तोड़ तो निभाई नहीं, अनुभव तो कुछ हुआ नहीं - ये दिमाग से याद किया। दिल में स्नेह को समाया नहीं। जब भी कोई बात दिमाग में आती है तो वह निकलती भी जल्दी है। लेकिन दिल में समा जाती है तो उसको चाहे सारी दुनिया भी दिल से निकालना चाहे, तो भी नहीं निकाल सकती। तो सर्व सम्बन्धों को समय प्रमाण, जिस समय जिस सम्बन्ध की आवश्यकता है, आवश्यकता है फ्रेंड की और याद करो बाप को तो मजा नहीं आयेगा। इसलिये जिस समय, जिस सम्बन्ध की अनुभूति चाहिये, उस सम्बन्ध को स्नेह से, दिल से अनुभव करो। फिर मेहनत भी नहीं लगेगी और बोर भी नहीं होंगे, सदा मनोरंजन। तो इस वर्ष क्या करेंगे?

मेहनत से निकलना है। हर मास सिर्फ ओ.के. लिखना, और कुछ नहीं लिखना। ओ.के. से समझ जायेंगे कि मेहनत से निकल गये। लम्बे-लम्बे पत्र नहीं लिखना। नहीं तो कहते हैं कि पत्र तो लिखा, जवाब नहीं मिलता। ऐसे नहीं है कि आपके पत्र पहुँचते नहीं हैं। पत्र लिखना शुरू करते हो और वहाँ कम्प्युटर में पहले आ जाता है, पोस्ट में पीछे पहुँचता है। वैसे बापदादा इतने लम्बे पत्रों का रोज की मुरली में सबको जवाब देता है। रोज पत्र लिखते हैं। इतना लम्बा पत्र कोई लिखता है! तो इतने अपने स्वमान को देखो-परमात्मा का कितना प्यार है आप सबसे। परमात्मा का प्यार है तब पत्र लिखते हैं अर्थात् मुरली में उत्तर भी देते हैं और याद-प्यार भी देते हैं। अगर कोई भी क्वेश्चन उठता है या कोई भी समस्या सामने आती है तो मुरली से रेसपॉन्स मिलता है। तो फिर कभी शिकायत नहीं करना कि उत्तर नहीं आया। बाकी अच्छा करते हो जो दिल में बात आती है वो बाप के आगे रखना अर्थात् दिल से निकाल दिया। वो भले करो, लेकिन शॉर्ट लिखो। पत्र जब लिखते हो तो उसी समय दिल तो हल्की हो जाती है ना। क्योंकि दे दिया ना। फिर दूसरे दिन की मुरली उस विधि से देखो कि जो मैंने पत्र लिखा उसका उत्तर क्या है? रेसपॉन्स मिलता तो है ना। बेहद का बाप है तो पत्र भी बेहद का लिखेगा, छोटा थोड़ेही लिखेगा।

बापदादा ने देखा कि चारों ओर के डबल विदेशी बच्चे सेवा में अच्छी लगन से लगे हुए हैं। एक-एक को देखते हैं तो हर एक एक-दो से प्यारे लगते हैं। अगर नाम लेंगे तो कितने नाम लेंगे! इसीलिये सभी अपने नाम से विशेष सेवा की रिटर्न मुबारक स्वीकार करना। नाम लेना शुरू करेंगे तो माला बनानी पड़ेगी। लेकिन माला के सभी मणके बापदादा के सामने हैं। समय प्रति समय बेहद की सेवा और सफलता सम्पन्न होती जा रही है। वर्तमान समय विशेष विदेश में दो सेवाओं का रिजल्ट अच्छा प्रत्यक्ष हुआ। अनेक प्रकार की सेवायें तो चलती ही रहती हैं लेकिन विशेष एक ये ग्लोबल बुक, जो मेहनत करके तैयार किया है, उसके निमित्त चारों ओर विशेष आत्माओं का सम्बन्ध-सम्पर्क में आना सहज हो गया। तो जिन बच्चों ने दिल व जान, सिक व प्रेम से समय दिया, सहयोग दिया, उसके प्रत्यक्षफल सेवा के निमित्त आत्माओं को बापदादा पदम गुणा मुबारक दे रहे हैं। और साथ-साथ जो अभी डॉयलाग वा रिट्रीट किया उसकी रिजल्ट भी पहले से अच्छे ते अच्छी रही। और सभी देश वालों ने इसमें जो सहयोग दिया, उन सबको भी मुबारक। लक्ष्य अच्छा रखा। तो चारों ओर अभी इस दो प्रकार की सेवा की अच्छी धूम-धाम चल रही है और आगे भी चलती रहेगी। बापदादा को याद है कि पहले विदेश से वी.आई.पीज. तो छोड़ो, आई.पीज. लाना भी मुश्किल लगता था। और अभी तो सहज लगता है ना! तो यह सेवा का प्रत्यक्षफल है। और कितनों की दुआयें मिलीं! जिसके हाथ में बुक जाता है, उन सबकी दुआयें किसके खाते में जमा होती हैं? जो निमित्त बनते हैं। चाहे देने की सेवा, चाहे बनाने की सेवा, चाहे आइडिया निकालने की, चाहे लिखने की-सबको दुआयें मिलती हैं। तो कितनी दुआयें मिल रही हैं! बहुत दुआयें मिलती हैं, आप सिर्फ रिसीव करो। अपने में ही बिजी रहते हो तो दुआयें रिसीव नहीं करते हो। और जो भी आई.पीज. या वी.आई.पीज. सम्पर्क में आते हैं तो एक कितनों को अनुभव सुनायेंगे तो उन सभी की दुआयें ब्राह्मण आत्माओं को बहुत-बहुत प्राप्त होती हैं। अगर दुआयें रिसीव करो तो भी सम्पन्न तो हो ही जायेंगे। बुक भी अच्छा निकाला और ये प्रोग्राम भी बहुत अच्छा है। और भारत वालों की विशेष सेवा अभी कार यात्रा की चल रही है। (बिजनेस विंग के भाई-बहिनों ने 11 कारों की एक रेली राजकोट से बाम्बे तक निकाली है, जिसमें अनेक प्रकार की सेवायें हो रही हैं) उसकी भी रिजल्ट बहुत अच्छी निकल रही है और आगे एक भी निमित्त बन गये तो अनेकों के भाग्य जगाते रहेंगे। तो ये भी सेवा की रिजल्ट अच्छी दिखाई दे रही है। जो भी इस सेवा में निमित्त हैं, उमंग-उत्साह से बढ़ रहे हैं, उन सभी को भी, चारों ओर के भारतवासी बच्चों को, सहयोगी बच्चों को, निमित्त बच्चों को बापदादा मुबारक देते हैं। मेहनत नाम मात्र और सफलता ज्यादा, अब ऐसी सेवा के प्लैन बनाओ। इस सेवा में भी यह दिखाई देता है कि मेहनत कम, रिजल्ट जयादा। ऐसे विदेश के दोनों प्रोग्राम में भी ऐसे हैं। अच्छा।

देश-विदेश के सर्व सेवा में उमंग-उत्साह से आगे बढ़ने वाले, अथक बन औरों को दान-वरदान देने वाली आत्माओं को, चारों ओर के बाप के सर्व सम्बन्ध के लव में लीन रहने वाली लवलीन आत्माओं को, सदा सहज अनुभव करने, औरों को भी सहज अनुभव कराने वाली सहजयोगी आत्माओं को, सदा स्वयं को स्वमान द्वारा सहज देहभान से मुक्त करने वाली जीवनमुक्त आत्माओं को, सदा बाप को साथ अनुभव करने वाले और साथी अनुभव करने वाले समीप आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

रिट्रीट व विदेश सेवा में सहयोगी भाई बहेनों से तथा दादियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात -

सभी खुशी से सेवा करते हैं तो उसका रिजल्ट भी ऐसा निकलता है। जैसा समय समीप आ रहा है, समय के साथ सफलता भी समीप आ रही है। कुछ समय पहले सफलता दूर लगती थी लेकिन अभी सफलता कितनी समीप अनुभव हो रही है। अभी कोई भी कार्य करते हो तो आता है ना कि सफलता हुई पड़ी है। सबकी स्थिति भी सहजयोगी की बढ़ती जाती है ना। तो जितनी स्थिति सहजयोगी की बढ़ती है उतनी सफलता भी स्वयं आगे आती है। सफलता के पीछे नहीं जाते, लेकिन सफलता स्वयं आती है। अच्छी विधि है। अभी स्वयं ऑफर करते हैं। पहले कॉन्टेक्ट करना मुश्किल था। बापदादा को जयन्ती (लण्डन की जयन्ती बहन) की बात याद आती है। जब बाहर की सेवा कहते थे तो सभी को कहती थी बड़ा मुश्किल है, विदेश है। आप लोगों को विदेश का पता नहीं। और अभी व्यक्ति मिलते हैं, स्थान कम है। मधुबन में भी देखो स्थान के कारण नम्बर मिलता है। सभी ने मेहनत अच्छी की। मोहब्बत में रहकर मेहनत की इसलिये मेहनत मोहब्बत में बदल गई। (बहनों ने बापदादा को ग्लोबल बुक तथा ज्वेल आफ लाइट बुक दिखाई, बापदादा ने सभी सेवा में सहयोग देने वालों को स्टेज पर बुलाया) इन्टरनेशनल है ना। जब चीज़ तैयार हो जाती है तो कितनी खुशी होती है। पहले बनाया जाता है फिर जब तैयार हो जाती है तो सभी के सामने आ जाती है। लण्डन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सभी ने इसमें सहयोग अच्छा दिया है। इसलिए जो भी निमित्त बने सभी अपने-अपने नाम से याद स्वीकार करना। बापदादा सभी निमित्त बने हुए बच्चों को मुबारक देते हैं। (चिकागो की कोन्फेरेंस भी अच्छी रही) कानफ्रेन्स की सफलता भी अच्छी हुई। सभी ने अच्छी सेवा की। अच्छी हिम्मत रखी और हिम्मत का प्रत्यक्षफल सर्व की मदद मिली। ब्राह्मण समाचार पत्रों में तो विशेष नाम आ गया। जो भी विशेष सेवा करते हैं उसका प्रत्यक्षफल पहले मन में खुशी होती है और साथ-साथ ब्राह्मणों के बुक में जमा हो जाता है। (मैक्सिको की कोन्फेरेंस भी अच्छी हुई) सुनाया ना कि हर कार्य में सफलता समीप आ रही है। जो भी, जहाँ भी सेवा कर रहे हो तो सर्व के संगठन के वायब्रेशन से विशेष कार्य में सफलता मिल रही है। जैसे बिल्डिंग बनती है ना तो एक-एक कण का सहयोग होता है, एक-एक ईट का सहयोग होता है तब बिल्डिंग बनती है। कहने में तो ऐसा ही आता है कि फलाने कॉन्ट्रेक्टर ने बनाया लेकिन ईट नहीं होती तो कॉन्ट्रेक्टर क्या करता? तो आप सभी सेवा के सफलता के बिल्डिंग की एक-एक विशेष ईट हो, फाउन्डेशन हो। बाकी जिस कार्य के लिये जो निमित्त बनता है उनका विशेष नाम हो जाता है। (यह यू.एन.की गोल्डन जुबली है। फैमिली इयर चल रहा है) तो गोल्डन सफलता लायेंगे ना। आपका तो हर वर्ष फैमिली इयर चल रहा है। फैमिली बढ़ रही है, फैमिली सुखी हो रही है। फैमिली प्लैनिंग तो आपका है ही। फैमिली कन्ट्रोल प्लैनिंग नहीं, फैमिली बढ़ने का प्लैनिंग। दुनिया वाले कहते हैं छोटा परिवार सुखी परिवार और यहाँ कहते हैं बड़ा परिवार, सुखी परिवार। सभी अच्छी मेहनत करते हैं। ‘मेहनत’ शब्द के बजाय, अच्छी सेवा करते हो। ‘मेहनत’ शब्द थोड़ा अच्छा नहीं लगता। सेवा द्वारा प्रत्यक्षफल खा रहे हो। डॉयलॉग अच्छा हुआ ना? सेवा से सभी खुश हैं? सब आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते ही रहेंगे। बुद्धि अच्छी चलाते हो। अब ऐसा प्लैन बनाओ जो कोई भी आत्मा ब्राह्मण परिवार से किनारे नहीं हो जाये। किले को ऐसा मजबूत करना पड़े जो कोई जा ही नहीं सके। अभी फिर भी सुनते हैं अच्छे-अच्छे चले गये, क्यों चले गये, कहाँ चले गये? तो ऐसा किला मजबूत करो तो जो कोई सोचे तो भी जा नहीं सके। जैसे चारों ओर करेन्ट की तारें लगा देते हैं ना तो आप भी वायब्रेशन द्वारा करेन्ट की तारें लगा दो, जो उन्हों को स्मृति आ जाये। अच्छा!

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

ग्रुप नं. 1

सर्व खज़ानों से भरपूर रहने वाला ही विश्व कल्याणकारी है

सभी अपने को विश्व कल्याणकारी बाप के बच्चे विश्व कल्याणकारी आत्मायें अनुभव करते हो? विश्व कल्याणकारी आत्माओं की विशेषता क्या होगी? विश्व का कल्याण करने वाली आत्मा पहले स्वयं सर्व खज़ानों से सम्पन्न होगी। तो सर्व खज़ानों से भरपूर हो? कितने खज़ाने हैं? बहुत हैं ना! तो सब खज़ानों से भरपूर आत्मायें ही औरों को दे सकेंगी। अगर ज्ञान का खज़ाना है तो फुल ज्ञान हो, कोई भी कमी नहीं हो तब कहेंगे भरपूर। तो फुल है या कभी कोई कम भी हो जाता है? है लेकिन समय पर कार्य में लगा सके-ये चेकिंग सदा करते रहो। तो समय पर यूज़ कर सकते हो कि समय बीत जाता है पीछे सोचते हो? फिर क्या कहना पड़ता है-ऐसे करते थे, ऐसे होता था तो ‘थे’ और ‘था’ होता है। क्या चेक करना है कि समय पर जो खज़ाना चाहिये वो खज़ाना कार्य में लगा या नहीं? विश्व कल्याणकारी आत्मायें सदा हर समय चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में, हर समय सेवा में बिजी रहती हैं। तो इतने बिजी रहते हो? सबसे ज्यादा सेवा में बिजी कौन रहता है? क्योंकि जब नाम ही है विश्व कल्याणकारी तो यह आक्युपेशन हो गया ना। तो जो आक्युपेशन होता है उसके बिना रह नहीं सकते। तो सदा बिजी हैं और सदा रहेंगे। सारा दिन बुद्धि में क्या रहता है? कोई आत्मा मिले और सन्देश दें। अच्छा है, भारतवासी अपने विधि से सेवा में आगे बढ़ रहे हैं और मलेशिया वाले अपनी विधि से, रशिया वाले अपनी विधि से, लेकिन सभी याद और सेवा की लगन से आगे बढ़ रहे हैं।

बापदादा को भी सभी बच्चों को देख खुशी होती है कि कहाँ-कहाँ से बिछुड़ी हुई आत्मायें अपने परिवार में पहुँच गई। आप सभी को भी खुशी है ना?अपना परिवार देख खुशी में नाचते हो ना? विश्व कल्याणकारी हैं तो चारों ओर के विश्व की आत्माओं का पार्ट नूंधा हुआ है। एक भी कोना रह जायेगा तो विश्व नहीं कहेंगे। अच्छा, रशिया में सेवा अच्छी बढ़ रही है। मलेशिया तो है ही आगे ना! अच्छी रिजल्ट है। भारत तो है ही फाउन्डेशन। भारत जगा तब तो विदेश जगा ना। तो हर स्थान और हर बच्चे की अच्छी खुशबू बाप के पास आती रहती है। भारतवासियों को अनेक तरफ की आत्माओं को देख और ज्यादा खुशी होती है। भारतवासी फ्राकदिल हैं। खुशी बढ़ती है ना-वाह, हमारा परिवार। आप सबको देख करके सभी के दिल से दुआयें निकलती हैं। बहुत अच्छा, जो हमारे बिछड़े हुए भाई-बहनें मिल गये। कोई बिछड़ा हुआ आकर परिवार में मिल जाये तो कितनी खुशी होती है! तो आपको भी खुशी और सभी को भी खुशी होती है। श्रीलंका वाले भी लक्की हैं। क्योंकि नाम ही है श्रीलंका। श्री सदा श्रेष्ठ को कहते हैं। तो श्रेष्ठ आत्मायें बन गये हैं ना! कितना भी कहाँ हंगामा होता रहे लेकिन आप सेफ हो। याद की छत्रछाया में हो। अच्छा!

ग्रुप नं. 2

स्वयं और समय के महत्व को जानकर भविष्य प्रालब्ध जमा करो

सदा अपने को बाप के साथ रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? सदा साथ रहने वाले वा कभी-कभी साथ रहने वाले क्या समझते हो? जब बाप का साथ छूटता है तो और कोई साथी बनते हैं? माया तो साथी बनती है ना! कितने जन्म माया के साथी रहे? बहुत रहे ना। और बाप का साथ प्रैक्टिकल में कितने समय का है? संगमयुग है ना और संगमयुग है भी सबसे छोटा युग। तो क्या करना चाहिये? सदा होना चाहिये। क्योंकि सारे कल्प में कितना भी पुरूषार्थ करो तो भी साथ का अनुभव कर सकेंगे? (नहीं) तो इसका सलोगन क्या है? (अभी नहीं तो कभी नहीं) यह याद रहता है? समय का भी महत्व याद रहे और स्वयं का भी महत्व याद रहे। दोनों महत्व वाले हैं ना! इस संगमयुग के समय को, जीवन को-दोनों को हीरे तुल्य कहा जाता है। हीरे का मूल्य कितना होता है! तो इतना महत्व जानते हुए एक सेकण्ड भी संगमयुग के साथ को छोड़ना नहीं है। सेकण्ड गया, तो सेकण्ड नहीं लेकिन बहुत कुछ गया। ऐसी स्मृति रहती है? सारे कल्प की प्रालब्ध जमा करने का समय अब है। अगर सीजन पर सीजन को महत्व नहीं देते तो सदा के लिये वंचित रह जाते हैं। तो इस समय का महत्व है, जमा करने का समय है। अगर राज्य अधिकारी भी बनते हो तो भी अभी के जमा के हिसाब से और पूज्य भी बनते हो तो इस समय के जमा के हिसाब से। एक छोटे से जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध जमा करना है। ये याद रहता है कि कभी-कभी? सम टाइम है? तो ये सम टाइम शब्द कब खत्म करेंगे? समाप्ति समारोह कब मनायेंगे? रावण को भी मारने के बाद जलाकर खत्म कर देते हैं? तो अभी मारा है, जलाया नहीं है। अच्छा, ये वेराइटी ग्रुप है। बापदादा एक-एक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। उसी अमूल्य रत्न की दृष्टि से देखते हैं। है ना अमूल्य रत्न! कम भाग्य नहीं है जो ऊंचे ते ऊंचे भगवान् के बन गये। तो खुश रहो और खुशी बांटते चलो। भरपूर हैं ना कि थोड़ा कम है? जो फुल होता है वह फेल नहीं होता। तो विजयी हैं ना? अच्छा!

ग्रुप नं. 3

सपूत बन स्वयं पर श्रीमत और वरदानों का हाथ अनुभव करते हुए समान बनने का सबूत दो

सभी का लक्ष्य बाप समान बनने का है ना। बाप समान बनना है या बने हैं? फलक से कहो कि हम ही बने थे, हम ही हैं और हम ही बनते रहेंगे। आप सभी का सलोगन है ‘फॉलो फादर’। तो फॉलो फादर करने वाले को क्या कहेंगे? समान हुए ना। जो बाप के कदम वो आपके कदम, तभी तो फॉलो फादर कहेंगे। तो फॉलो फादर है? बापदादा सभी बच्चों को सदा सपूत बच्चों के रूप में देखते हैं। सपूत बच्चा किसको कहा जाता है? जो हर कर्म में सपूत बन बाप को सबूत दे। सपूत अर्थात् सबूत देने वाले। प्रत्यक्षफल खा रहे हो ना कि भविष्य के लिए सिर्फ जमा होता है, वर्तमान में नहीं। एक कदम सेवा का करते हो वा याद में रहते हो तो शक्ति मिलती है, खुशी भी मिलती है, अनुभव है? प्रत्यक्षफल खाने वाले अर्थात् सदा हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी रहने वाले। तो सभी वेल्दी भी हो। कितने खज़ाने हैं? बहुत खज़ाने हैं ना। भरपूर हो ना? या थोड़ा-थोड़ा खाली हैं? जितना खज़ानों से भरपूर रहेंगे तो जो सम्पन्न होता है उसमें हलचल भी नहीं होती और दूसरी चीज़ भर भी नहीं सकती। सपूत बच्चे अर्थात् सदा बाप के श्रीमत का हाथ और साथ अनुभव करने वाले। तो श्रीमत का हाथ सदा अपने ऊपर अनुभव करते चलो। सदा हाथ है? तो जहाँ बाप का हाथ है वहाँ सफलता है ही है। बाप की श्रीमत का हाथ अर्थात् वरदान का हाथ। कोई भी कार्य करते हो तो पहले ये स्मृति में लाओ कि श्रीमत का हाथ, वरदान का हाथ सदा हमारे ऊपर है। अनुभव करते हो ना और बाप को भी सपूत बच्चों को वरदान देने में खुशी होती है। कभी भी ये वरदान का हाथ छूट नहीं सकता। कोई छुड़ा सकता है, है किसकी ताकत कि कभी-कभी माया की हो जाती है? माया ने विदाई कर ली या कभी-कभी उसको बुला लेते हो? कमज़ोर होना अर्थात् माया को बुलाना। कमज़ोर होते हो क्या? चाहते नहीं हो लेकिन हो जाते हो? नहीं, हो ही नहीं सकते। मास्टर सर्वशक्तिमान और कमज़ोर हो सकता है क्या? रोशनी के होते अंधकार होगा क्या? तो सर्वशक्तिमान और कमज़ोर दोनों बातें मिलती हैं क्या?फिर माया को क्यों बुलाते हो? बुलाते नहीं हो, वो जबरदस्ती आती है। माया का आपसे प्यार है, आपका माया से नहीं? सदा अमृतवेले अपने आपको विजय का तिलक लगाओ और बार-बार उसे रिफ्रेश करो। अनेक बार के विजयी हो। ये तो पक्का है ना! जब इतनी हिम्मत रख बाप के बन गये तो बनने के बाद हिम्मत की पद्म गुणा मदद मिलती है। एक कदम की हिम्मत और पदम कदम की मदद। यह अनुभव है ना? पदमगुणा मदद अनुभव करने वाले अर्थात् सदा बाप समान विजयी हैं ही हैं।  सबसे ज्यादा प्यार बाप से है ना। तो जिससे प्यार होता है उस जैसा तो बनना ही है। प्यार का रेसपॉन्स है समान बनना। अच्छा, सभी अपने को बाप के समीप, बाप के प्यारे ते प्यारी आत्मायें अनुभव कर उड़ते चलो।

ग्रुप नं. 4

सदा बाप के दिलतख्तनशीन, परमात्म प्यारे बनो तो बेफ़्रिक बादशाह बन जायेंगे

सभी लास्ट सो फास्ट हो ना। फर्स्ट डिवीजन में आने वाले हो? फर्स्ट आने वाले अर्थात् राज्य अधिकारी आत्मायें। तो सभी राज्य अधिकारी हो? सतयुग-त्रेता के विश्व राज्य के तख्तनशीन समय प्रमाण कितने बनेंगे?सब बनेंगे! तो तख्त पर बैठेंगे या बैठने वाले के साथी होंगे? जब सभी को सुनाते  हो 21 जन्म हैं, तो कितने नम्बरवार तख्त पर बैठेंगे? इकठ्ठे-इकठ्ठे बैठेंगे या टर्न बाई टर्न बैठेंगे? सबसे बड़े से बड़े राज्य अधिकार का अनुभव अब संगम पर स्वराज्य का होता है। मजा तो स्वराज्य अधिकारी का अभी अनुभव कर रहे हो ना। स्वराज्य का नशा है ना या सतयुग में जब तख्त पर बैठेंगे तब होगा? अभी का नशा बड़ा है या सतयुग का नशा बड़ा है? (अभी का) तो निश्चय से सदा कहते हो कि स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी। स्वराज्य हमारा ब्राह्मण जन्म का अधिकार है। याद रहता है ना कि कभी प्रजा भी बन जाते हो?प्रजा का अर्थ है अधीन रहना और राजा का अर्थ है अधिकारी। तो सदा अधिकारी रहते हो या कभी अधीन भी हो जाते हो? अभी संगमयुग पर भी अगर ‘सम टाइम’ होगा तो ‘सदा’ कब होगा? अभी का सदा है या भविष्य का? पाण्डव विजयी हो गये? इस समय विजयी हो या वहाँ भी जाकर रहेंगे, क्या होगा?क्योंकि आप सभी बाप के प्यारे हो ना तो दिल तख्तनशीन हो। तो जो दिल तख्तनशीन हैं, दिल के प्यारे हैं उसका चित्र स्वत: ही दिल में खिंचता है। आप सभी क्या कहते हो कि हम सदा कहाँ रहते हैं? बाप के दिल में रहते हो ना?दिल से जुदा हो ही नहीं सकते। कोई की हिम्मत नहीं जो दिलाराम के दिल से आपको अलग कर सके। ये पक्का निश्चय है ना? गीत गाते हो ना-हम जुदा हो नहीं सकते। चाहे सारी दुनिया अलग करने की कोशिश करे तो भी नहीं हो सकते। क्योंकि कोटों में कोई एक आप हो, और तो आपके आगे कुछ भी नहीं हैं। फास्ट ग्रुप की यही निशानी है ना। शरीर छूट जाये लेकिन दिलतख्त नहीं छूट सकता। इतना पक्का है ना? तो ये तख्त किसको मिलता है? जो पदमापदम भाग्यवान हैं। तो छोड़ेंगे कैसे? चैलेन्ज करते हो कि भले ट्रॉयल करो। इतने अटल हो ना। बच्चों की हिम्मत को देख बाप भी बलिहार जाते हैं। दुनिया के आगे फखर से कहते हो कि हम परमात्म प्यारे बन गये। इसी फखर में रहने वाले फ़्रिक से फरिग हो। फ़्रिक सब खत्म हो गई ना कि एक दो कोने में रह गया? कोई जेब में छिपा हुआ तो रह नहीं गया? जब बाप साथ है तो बेफ़्रिक बादशाह हो। बाप को सब फ़्रिक दे दी ना? देने में होशियार हो ना? कि सम्भालने में होशियार हो? देने में भी होशियार हो और लेने में भी होशियार हो! कभी गलती से कहते हो कि मेरा मन आज थोड़ा-सा उदास है, तो मेरा है क्या? या तेरा हो गया? या उस समय मेरा हो जाता है? मेरा मन नहीं लगता, मेरा मन नहीं करता-ये बोल ही व्यर्थ बोल हैं। मेरा कहना माना मुश्किल में पड़ना। तो मन दे दिया है या रख दिया है? या कभी-कभी वापस ले लेते हो? तो ब्राह्मणों की भाषा क्या है? मेरा या तेरा? तो क्यों सोचते हो? ये डिक्शनरी की भाषा ही नहीं है। मेरा-मेरा कहकर मैला कर देते हैं। मन दे दिया, तन दे दिया, धन दे दिया, ट्रस्टी हो, मेरा नहीं है। ट्रस्टी हो या गृहस्थी हो? गृहस्थी माना मेरा, ट्रस्टी माना तेरा। कौन हो सभी? अपने में ट्रस्ट है? बाप तो स्वयं ऑफर करता है मैं आपके साथ हूँ। अच्छा, विश्व कल्याण के यज्ञकुण्ड भिन्न-भिन्न देशों में प्रज्जवलित कर लिये। बापदादा अनेक देशों में मैसेज देने वाले सेवाधारी बच्चों को देख बहुत हर्षित होते हैं कि वाह मेरे बच्चे वाह! कौन हो? वाह-वाह बच्चे। वाह-वाह हो ना। हाय-हाय करने वाले तो नहीं ना? अच्छा, बाप विश्व कल्याणकारी है ना तो कोई भी एरिया वंचित न रहे। कोने-कोने से, चाहे एक निकले, चाहे दो निकले, लेकिन निकलने जरूर हैं। तो वृद्धि तो होनी है। तो हिम्मत है, मदद भी है।

जहाँ बाप का हाथ है वहाँ सफलता है ही है। बाप की श्रीमत का हाथ अर्थात् वरदान का हाथ। कोई भी कार्य करते हो तो पहले ये स्मृति में लाओ कि श्रीमत का हाथ, वरदान का हाथ सदा हमारे ऊपर है।